भगवान श्री कृष्ण : मैं ही ईश्वर हूँ . I AM GOD.


भगवान श्री कृष्ण ने भगवद गीता में अनेक बार कहा है कि वे ही परमेश्वर हैं। शायद ही किसी भी शस्त्र मैं किसी ने ऐसा कहा हो। इस ज्ञान को उन्हों ने कभी गुप्त रूप से और कभी सीधे-सीधे कहा है। प्रस्तुत हैं कुछ श्लोक जो इस बात की पुष्टि करतें हैं।   



भोक्तारं यज्ञतपसां सर्वलोकमहेश्वरम्
सुहृदं सर्वभूतानां ज्ञात्वा मां शान्तिमृच्छति
BG 5.29 मुझे समस्त यज्ञों तथा तपस्याओं का परं भोक्ता, समस्त लोकों तथा देवताओं का परमेश्र्वर एवं समस्त जीवों का उपकारी एवं हितैषी जानकर मेरे भावनामृत से पूर्ण पुरुष भौतिक दुखों से शान्ति लाभ-करता है |


योगिनामपि सर्वेषां मद्गतेनान्तरात्मना
श्रद्धावान्भजते यो मां मे युक्ततमो मतः
BG 6.47 और समस्त योगियों में से जो योगी अत्यन्त श्रद्धापूर्वक मेरे परायण है, अपने अन्तःकरण में मेरे विषय में सोचता है और मेरी दिव्य प्रेमाभक्ति करता है वह योग में मुझसे परम अन्तरंग रूप में युक्त रहता है और सबों में सर्वोच्च है | यही मेरा मत है |
 

एतद्योनीनि भूतानि सर्वाणीत्युपधारय
अहं कृत्स्नस्य जगतः प्रभवः प्रलयस्तथा
BG 7.6 सारे प्राणियों का उद्गम इन दोनों शक्तियों में है(भौतिक तथा आध्यात्मिक)  | इस जगत् में जो कुछ भी भौतिक तथा आध्यात्मिक है, उसकी उत्पत्ति तथा प्रलय मुझे ही जानो |


मत्तः परतरं नान्यत्किञ्चिदस्ति धनञ्जय
मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव
BG 7.7 हे धनञ्जय! मुझसे श्रेष्ठ कोई सत्य नहीं है | जिस प्रकार मोती धागे में गुँथे रहते हैं, उसी प्रकार सब कुछ मुझ पर ही आश्रित है |


 
बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते
वासुदेवः सर्वमिति महात्मा सुदुर्लभः
BG7.19 अनेक जन्म-जन्मान्तर के बाद जिसे सचमुच ज्ञान होता है, वह मुझको समस्त कारणों का कारण जानकर मेरी शरण में आता है | ऐसा महात्मा अत्यन्त दुर्लभ होता है |


अव्यक्तं व्यक्तिमापन्नं मन्यन्ते मामबुद्धयः
परं भावमजानन्तो ममाव्ययमनुत्तमम्
BG7.24 बुद्धिहीन मनुष्य मुझको ठीक से जानने के कारण सोचते हैं कि मैं (भगवान् कृष्ण) पहले निराकार था और अब मैंने इस स्वरूप को धारण किया है|  वे अपने अल्पज्ञान के कारण मेरी अविनाशी तथा सर्वोच्च प्रकृति को नहीं जान पाते |
 

मया ततमिदं सर्वं जगदव्यक्तमूर्तिना
मत्स्थानि सर्वभूतानि चाहं तेषवस्थितः
BG 9.4 यह सम्पूर्ण जगत् मेरे अव्यक्त रूप द्वारा व्याप्त है | समस्त जीव मुझमें हैं, किन्तु मैं उनमें नहीं हूँ |



सर्वभूतानि कौन्तेय प्रकृतिं यान्ति मामिकाम्
कल्पक्षये पुनस्तानि कल्पादौ विसृजाम्यहम्
BG 9.7 हे कुन्तीपुत्र! कल्प का अन्त होने पर सारे प्राणी मेरी प्रकृति में प्रवेश करते हैं और अन्य कल्प के आरम्भ होने पर मैं उन्हें अपनी शक्ति से पुनः उत्पन्न करता हूँ |

 
प्रकृतिं स्वामवष्टभ्य विसृजामि पुनः पुनः
भूतग्राममिमं कृत्स्नमवशं प्रकृतेर्वशात्
BG9.8 सम्पूर्ण विराट जगत मेरे अधीन है | यह मेरी इच्छा से बारम्बार स्वतः प्रकट होता रहता है और मेरी ही इच्छा से अन्त में विनष्ट होता है |


मयाध्यक्षेण प्रकृतिः सूयते सचराचरं
हेतुनानेन कौन्तेय जगद्विपरिवर्तते 9.10
BG 9.10 हे कुन्तीपुत्र! यह भौतिक प्रकृति मेरी शक्तियों में से एक है और मेरी अध्यक्षता में कार्य करती है, जिससे सारे चर तथा अचर प्राणी उत्पन्न होते हैं | इसके शासन में यह जगत् बारम्बार सृजित और विनष्ट होता रहता है |

अहं सर्वस्य प्रभवो मत्तः सर्वं प्रवर्तते
इति मत्वा भजन्ते मां बुधा भावसमन्विताः 10.8
BG10.8 मैं समस्त आध्यात्मिक तथा भौतिक जगतों का कारण हूँ, प्रत्येक वस्तु मुझ ही से उद्भूत है | जो बुद्धिमान यह भलीभाँति जानते हैं, वे मेरी प्रेमाभक्ति में लगते हैं तथा हृदय से पूरी तरह मेरी पूजा में तत्पर होते हैं |




Comments

Popular posts from this blog

NatyaShastra & Bhava-Rasa Theory of Bharata

SWASTIK Symbol Originated in the Harappan Period?

Ancient Indian Hair-Styles